"GHAZAL PUBLISHED IN LITERARY URDU MAGAZINE " DAWAT O TABLEEGH " OCT-DEC 2012 EDITION (DELHI )"
COURTESY : Rahatmazahiri Mazahiri JI
|
वही फुरक़त के अँधेरे वही अंगनाई हो
तेरी यादों का हों मेला ,शब् -ए -तन्हाई हो मैं उसे जानती हूँ सिर्फ उसे जानती हूँ क्या ज़ुरूरी है ज़माने से शनासाई हो इतनी शिद्दत से कोई याद भी आया ना करे होश में आऊं तो दुनिया ही तमाशाई हो मेरी आँखों में कई ज़ख्म हैं महरूमी के मेरे टूटे हुए ख़्वाबों की मसीहाई हो
वो किसी
और का है मुझ से बिछड कर “सीमा “
कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो |

1 comment:
bahut kuhb, atti sunder, jitni bhi tarif kri jaye utni kam he
Post a Comment