स्त्री ही स्त्री की दुश्मन
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स्त्री ही स्त्री की दुश्मन
कई बार ये प्रश्न मन को आहत कर जाता है की स्त्री ही स्त्री की दुश्मन क्यूँ हो जाती है, देखा जाता है सास बहु का रिश्ता हो, या ननद भाभी का , या देवरानी जेठानी का ये कुछ ऐसे रिश्ते हैं जहां इस कडवाहट को आसानी से देखा जा सकता है. मगर एक बात ये भी सच है की ये दुश्मनी एक स्त्री और दूसरी स्त्री के बीच तब शुरू होती है जब एक लड़की अपनी उम्र के कुछ बीस या बाईस साल गुजर कर एक नये रिश्ते नये परिवेश में कदम रखती है और नये परिवार से उसका एक रिश्ता जुड़ता है ..... मगर क्या ये सच है????? अगर इसके दुसरे पहलू को गहराई से देखा जाए तो एक ऐसा कडवा सच सामने आता है जो शायद दिल को दहला देता है और इस सत्य से आँखें मिलाने को तैयार नहीं होता.
वो सत्य ये है की एक स्त्री दूसरी स्त्री की दुश्मन गर्भ से ही हो जाती है......है न बेहद चौंका देने वाली बात ... मगर सच हमेशा ही कडवा होता है..... जब एक स्त्री को ये पता चलता है की उसके गर्भ में सांसे भरता शिशु बेटा नहीं बेटी है ......तब उसका प्यार मोह ममता उस अजन्मे शिशु के लिए निर्जीव हो जाती है और वो एक पल में उस अजन्मे शिशु को जन्म न देने का कठिन निर्णय कर डालती है.हाँ यहाँ ये जरुर है की हर माँ जानबूझ कर ऐसा नहीं करती, कुछ घर परिवार के दवाब में , या मज़बूरी में बेटे की चाह में जो आगे चल कर वंश का नाम रोशन करेगा , इन सब परिस्थियों के अंतर्गत ये कठोर निर्णय लेती है, मगर लेती तो है. उस एक पल में क्या माँ ही बेटी की दुश्मन नहीं बन जाती, स्त्री से स्त्री की दुश्मनी तो गर्भ से ही शुरू हो जाती है , फिर चाहे कारण जो भी हो. आज भी हम जिस दकिया नुसी परिवेश या समाज में जीते हैं, ये उसी का नतीजा है.
एक दूसरा पहलू भी स्त्री को स्त्री की सबसे बड़ी दुश्मन होने पर मजबूर करता है , आगे जाकर ये भी देखा जाता है की परिवार में हर स्त्री अपनी एक पहचान और ध्यान चाहती है, जब घर की स्त्रियाँ माँ , बेटी , बहु एक ही आदमी से जुडी होती हैं, जेसे माँ बेटे का बहु से ज्यादा अपनी तरफ ध्यान चाहती है, जहां बेटा जरा भी चूका, वही माँ की सबसे बड़ी दुश्मन बहु हो जाती है. प्राय पुरुष प्रधान समाज में परिवार में पुरुष की उपस्थिति स्त्रियों के जीवन में सुरक्षा की भावना पैदा करता है, पुरुष का पास होना उन्हें समाज से सुरक्षित होने का एहसास दिलाता है, और यही हीन भावना उन्हें अन्य महिलाओं से प्रतिस्पर्धा करने को प्रेरित करती है , और इसी के चलते वे सुन्दर साज श्रृंगार करना अपने घर को सजाने सवारने को अधिक महत्त्व देती हैं , ताकि उनके घर के पुरुषो चाहे वे पिता हो भाई हो पति हो उन सब की नज़र में वे महत्वपूर्ण रह सकें, देखा जाये तो स्त्री स्वाभाव से ऐसे नहीं होती मगर अपने को पुरुष की नज़र में महत्वपूर्ण साबित करने और ध्यान पाने के लिए वे दूसरी स्त्री को नीचा दिखाने को मजबूर हो जाती है. जब भी दो स्त्री एक साथ होती हैं, तो यही देखा जाता है की उनके पास दूसरी औरतों की चुगली करने के अलावा कुछ नहीं होता, किस ने क्या पहना, क्या खरीदा, किस पड़ोसन की सास बहु के बीच में शीत युद्ध चल रहा है, कई बार इसी इर्ष्य द्वेष के चलते औरतो की बहुत गहरी दोस्ती भी पल में टूट जाती है. "सास द्वारा दहेज ना ला पाने की वजह से बहु को प्रताड़ित करना और जला तक देना, या फिर बहु का बार बार कन्या को जन्म देने की वजह से बेटे की दूसरी शादी कर देना, ये सब ऐसी आम बाते हैं , जिनकी वजह से ये कहावत और भी पुख्ता हो जाती है " "एक औरत ही एक औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है." हर स्त्री सिर्फ अगर अपने बारे में सोचेगी अपने को महत्पूर्ण बनाने की होड़ में लगी रहेगी तो परिवार और समाज का बिखरना तय है.
एक स्त्री को अपने परिवार और समाज की हर स्त्री को साथ लेकर ही चलना होगा, याद रखना होगा की नारी को "ममता और शक्ति " की उपाधि और मान सामान से नवाजा है वो उसकी पूरक हैं, इतिहास गवाह है नारी की अपूर्व शक्तियों का, और आज समाज को उसी ममतामयी , शक्तिशाली नारी की जरूरत है.
इन समस्याओ से उभरने के लिए जरूरी है की स्त्री अपनी सोचने की क्षमता और अपनी व्यापक मानसिक शक्ति का सही दिशा में उपयोग करे , महिला जितनी शिक्षित और तर्कसंगत विचारों से परिपूर्ण होगी वो अपने परिवार की महिलाओं की मानसिक सोच को जरुर स्वस्थ बना सकती है.
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(SEEMA GUPTA)
1 comment:
jo aapne likha hai wo 16 aane sach hai
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