




"महफिल"
हमने तुम्हें अपनी महफिल मे बुलाया था पिलाने के लिए,
पर तुम चले आए हमे रुलाने के लिए.
हम तुम्हारे आने पर तुम्हें सजदा करते,
तुमने तो मौका ही ना दिए की हम कोई फरियाद करते.
तुम तो किसी और की महफिल से उठकर चले आए,
तुम्हें इस हाल मे देखकर आंखों मे अश्क उतर आए.
हम तो बैठे रहे तुम्हारे इन्तजार मे,
और तुम खोये रहे किसी गैर के प्यार मे.
तुमने हमारी चाहत का क्या खूब सिला दिया,
आखीर मेरी जिन्दगी से किस बात का बदला लिया.
तुमने किसी और के हाथों से जाम पिया ,
पर हमने अपने हर पैमाने पर तुम्हारा नाम लिख दिया.
अब आए हो तुम तो कुछ नही है यहाँ,
वो देखो, वो द्खो ........
मेरे दिल के पैमाने के टुकड़े पडे हैं वहाँ......
लौट जाओ उसी महफिल मे तुम्हें कसम है मेरी,
आज के बाद इस महफिल मे भटका करेगी सिर्फ़ रूह ही मेरी!!!!!!
18 comments:
bahut kuhb, bahut hi accha likha hai
bhut hi accha likha hai. very good
bahut hi accha likha hai, very good.
साथी
तू ही तशना-लब है साथी,
मुझे क्या पिलाएगी तू ?
तेरा जाम तो है टूटा,
मुझे क्या रिझाएगी तू ?
तू बुझी हुई है ख़ुद भी,
मुझे क्या जलाएगी तू?
तेरा साज़ सूना-सूना,
तेरा नग़्मा ग़म-रसीदा,
तेरी ज़ुल्फ़ भी परीशाँ,
तेरी बज्म वीराँ-वीराँ…
यूँ लगे कि जैसे सहरा,
कोई एक पल न ठहरा,
सभी रिन्द जा चुके है,
मै ही रह गया अकेला!
तू करीब आ के मैरे,
तेरी तशनगी मिटा दूँ,
तू मुझे पिला दे सब ग़म,
मै तुझे हयात ला दुँ,
तुझे आग दूँ जिगर की
तेरे हुस्न को जिला दूँ
तेरी बज़्म फ़िर सजा दूँ।
तेरी ज़िन्दगी है मुझसे,
तू ही मेरी ज़िन्दगी है,
मै हूँ दीप तू है बाती,
मिले हम तो रौशनी है।
मन्सूर अली हाश्मी
"साथी एक पुरानी रचना है,जो निम्न साईट पर
प्रकाशित थी, आपकी रचना से निकट लगी सो
प्रेषित कर दी… एम,हाशमी
http://hashimiyaat.mywebdunia.com/2008/06/28/1214618940000.html
सीमा जी बहुत ही सुन्दर कविता, ओर आप का बालंग भी बहुत प्यारा हे
धन्यवाद
द्वंद्व ! एक अभिव्यक्ति !
हम तो बैठे रहे तुम्हारे इन्तजार मे,
और तुम खोये रहे किसी गैर के प्यार मे.
तुमने किसी और के हाथों से जाम पिया ,
पर हमने अपने हर पैमाने पर तुम्हारा नाम लिख दिया.
बहुत प्यारे शेर है, बधाई।
हम तो बैठे रहे तुम्हारे इन्तजार मे,
और तुम खोये रहे किसी गैर के प्यार मे.
तुमने हमारी चाहत का क्या खूब सिला दिया,
आखीर मेरी जिन्दगी से किस बात का बदला लिया.
seema ji bahut pyari gajal hai aapki, dhanwad . aapka photo selection v kaafi achchha hai.
आपकी रचनाओं में दर्द झलकता हैं।
अच्छी हैं पर मैं तो यही कहूँगा
न आयेंगे पास कभी गम....
बस मुस्कराने की कला सीख लो......
लौट जाओ उसी महफिल मे तुम्हें कसम है मेरी,
आज के बाद इस महफिल मे भटका करेगी सिर्फ़ रूह ही मेरी!!!!!!
you envisage the new dimension in the world of poetry
regards
हम तुम्हारे आने पर तुम्हें सजदा करते,
तुमने तो मौका ही ना दिए की हम कोई फरियाद करते.
क्या बात है. बहुत बढ़िया.
तुमने किसी और के हाथों से जाम पिया ,
पर हमने अपने हर पैमाने पर तुम्हारा नाम लिख दिया.
bahut achaa likha hai aapne. Aise hi likhte raho.
In chand panktiyon par ek nazar dalna:
http://dev-poetry.blogspot.com/2008/10/blog-post_07.html
deevaangi kee had hai ...kabhi ik gana-sa suna tha ...esi divaangi... dekhi nahin kahin...vaisi-si hi kuch !!
अच्छी कविता। पसंद आयी।
लौट जाओ उसी महफिल मे, तुम्हें कसम दुरूह मेरी,
आज के बाद इस महफिल में, भटका करेगी सिर्फ़ रूह मेरी!!!!!!
bahut achchha hai. hamane tu...
tum chale aye hame rulane ke liye.
aapne sach saabit kar diya.
Dard ko dil mein jagah de gaalib shayari ilmiyat se nahin aati.
Kya kahoon shabd nahin hai.
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