"पल रिसता रहा"
प्रेम पराकाष्ठा की परिधि को
जिस पल ने था पार किया
वो शरमा के सिमट गया
जिस में भरा
आक्रोश था, तकरार थी
वो पल विद्रोह कर
चला गया
जिस ने सही
क्रोध की पीड़ा
वो अश्रुओं संग
क्षितिज में विलीन हुआ
विरह अग्नि में
जो अभिशप्त हुआ
और झुलस गया
वो अभागा "पल रिसता रहा..."
प्रेम पराकाष्ठा की परिधि को
जिस पल ने था पार किया
वो शरमा के सिमट गया
जिस में भरा
आक्रोश था, तकरार थी
वो पल विद्रोह कर
चला गया
जिस ने सही
क्रोध की पीड़ा
वो अश्रुओं संग
क्षितिज में विलीन हुआ
विरह अग्नि में
जो अभिशप्त हुआ
और झुलस गया
वो अभागा "पल रिसता रहा..."
Prem Prakashta ki paridhi ko
jis pal ne tha paar kiya
vo shama ke simat gaya
jis mein bhara
akrosh tha, takrar thi
vo pal vidroh kar
chala gya
jis ne sahi
krodh ki pida
vo ashruon sang
kshitij mein vilin hua
virah agni mein
jo abhishapt hua
or julas gaya
vo abhaga Pal Rista Raha............
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