Wednesday, April 23, 2014

Ghazal Published in "Adabi Dehliz" April - June 2014

सौदाए -इश्क़ के तो ख़तावार हम नहीं ,
हैं इश्क़ के मरीज़ गुनहगार हम नहीं । 
हम जो खटक रहे थे तुम्हारी निगाह में ,
"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं"
उसकी ख़ुशी के वास्ते खुद को फ़ना किया ,
फिर भी वो कह रहा के वफ़ादार हम नहीं ।
दिल में हमारे एक तलातुम सा है बापा ,
ख़ामोश हैं के ज़ीनते - अख़बार हम नहीं ।
तन्हाइयों की हमने ही दुनिया बसाई है ,
गोशे में खुदके हैं ,सरे -बाज़ार हम नहीं ।
दिल से किया है इश्क़ का सौदा तो फ़िक्र क्या ,
एहले - जुनूँ ज़रूर हैं बीमार हम नहीं ।
सहरा के सर्दो -गर्म ही अब रास आ गए ,
सीमा किसी चमन के रवादार हम नहीं ।
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मेरे चेहरे पे जो कहानी है
मेरे दिल ही की तर्जुमानी है
नींद आँखों में जागती ही रही
गरचे रातों की ख़ाक छानी है
उसकी सूरत ग़ज़ल में ढाली है
उस में तस्वीर अब बनानी है
दो घडी के लिए ही आ जाओ
छोडिये जो भी बदगुमानी है
जोड़ना दिल से दिल नहीं मुश्किल
एक दीवार बस गिरानी है
इस में खुशियाँ बिखेर दे सीमा
चार दिन के ये जिंदगानी है..

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