Sunday, January 19, 2014

"दिसम्बर बहता है " Published in 'अनहद कृति" 25th December 2013

Poetry Published in Literary Magazine 'अनहद कृति"
Edition 25th December 2013 
"दिसम्बर बहता है " 

"दिसम्बर बहता है " 
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दश्त-ए -दर्द के मंज़र 
खुश्क हवाओं के लश्कर
ज़र्द पत्तों की आहट
रगे लहू मौसम मौसम
दिसम्बर बहता है .....
बिखरते हैं
नर्म हथेलियों पे शबनम की तरह
तुम्हारे लम्स के सराब
दहकते हैं पलाश
मेरे माज़ी में गये दिनों की तरह
दिसम्बर रहता है ...........
शाम की शफक उदासी बैचेनी
है वो कौन जो ढूँढता है मुझे
अब भी तू नहीं , तब भी तू नहीं
दिसम्बर कहता है ..........
बहती नदिया के उस पार
खुश्क पत्ते , सराबोर रूहें
इश्क की मुन्तजिर आँखों में
अश्कों की तरह धीरे धीरे
दिसम्बर बहता है ...........

"DECEMBER BEHTA HAI "
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Dasht-e-Dard ke manzar
Khushk hawaon ke lashkar
zard patton ki aahat
rag-e-laho mosam mosam
December behta hai .........
bikharte hain
narm hatheli pe shabnam ki tarah
tumhare lams ke saraab
dehakte hain palash
mere mazi mein gayay dino ki tarah
December rehta hai ................
shaam ki shafaq udasi bechaini
hai woh koun jo dhoondtha hai mujhay
Ab bhi tu nahee, tab bhi tu nahee........
December kehta hai.............
behti nadiya ke uos paar
kushk pattay sharaboor roohain
Ishq jo muntazir ankhon mein
ashkon ki tarah dhire dhire
December behta hai........
...........

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