


"खत"
आज लहू का कतरा कतरा स्याई बना है,
और ये जख्मी दिल ही खत की लिखाई बना है.
दर्द बडा बेदर्द है, वो ही गवाही बना है,
तार- तार हर दिल कौना तबाही बना है.
देख मेरे चाहत का किस्सा जग हंसाई बना है,
मेरे बर्बादी का सारा ही जहाँ तमाशाई बना है.
नाम वफा था जिसका वो ही बेवफाई बना है,
जख्मों से रिसता लहू मेरी सच्चाई बना है.
कोई साथ नही हर मंजर तन्हाई बना है ,
आंसू का हर मोती मेरा हमराही बना है.
खुने दिल से लिखा ये "खत",मेरे रुसवाई बना है,
घडी कयामत की है जिसमे जनाजा हे मेरी शहनाई बना है!