Poetry published in Bilingual journal published from Pittsburgh, USA :: पिट्सबर्ग अमेरिका से प्रकाशित द्वैभाषिक.
प्यार का दर्द भी काम आएगा दवा बनकर,
आप आ जाएँ अगर काश मसीहा बनकर।
तुम मिरे साथ जो होते तो बहारें होतीं,
चीखते फिरते न सहराओं की सदा बनकर।
मैंने हसरत से निगाहों को उठा रक्खा है,
तुम नज़र आओ तो महताब की ज़िया बनकर।
मैं तुझे दिल में बुरा कहना अगर चाहूँ भी,
लफ़्ज़ होंठों पे चले आएँगे दुआ बनकर।
मैं किसी शाख़ पे करती हूँ नशेमन तामीर,
तुम भी गुलशन में रहो ख़ुश्बु-ओ-सबा बनकर।
मुन्तज़िर बैठी हूँ इक उम्र से तश्ना सीमा,
सहने-दिल पे वो न बरसा कभी घटा बनकर
आप आ जाएँ अगर काश मसीहा बनकर।
तुम मिरे साथ जो होते तो बहारें होतीं,
चीखते फिरते न सहराओं की सदा बनकर।
मैंने हसरत से निगाहों को उठा रक्खा है,
तुम नज़र आओ तो महताब की ज़िया बनकर।
मैं तुझे दिल में बुरा कहना अगर चाहूँ भी,
लफ़्ज़ होंठों पे चले आएँगे दुआ बनकर।
मैं किसी शाख़ पे करती हूँ नशेमन तामीर,
तुम भी गुलशन में रहो ख़ुश्बु-ओ-सबा बनकर।
मुन्तज़िर बैठी हूँ इक उम्र से तश्ना सीमा,
सहने-दिल पे वो न बरसा कभी घटा बनकर
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