Poetry Published in " Hastkshep" May 2013.
मई 2013 के प्रवेशांक ''हस्तक्षेप '' में मेरी ग़ज़ल और नज़्म को स्थान मिला . सम्पादक जी का दिल से शुक्रिया
नज़्म
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ऐ जाने -जहां ...
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ऐ जाने -जहां ...
है तेरा ही ख्याल
तु मेरा शोक़ है कहाँ
तेरा शोके- तमाशा हूँ मैं
मेरे ज़ब्त का मुदावा है तु मगर
दश्ते -दिल में उतर आई है
फ़िराक के लम्हों की रौनकें कितनी
इक आलमे - बेक़रारी में
निगाह गाफ़िल है तुझसे
मुझ में तुझ से खुलते तो है
मजबूर तकाजों के दरीचे लेकिन
तु मेरा शोक़ है कहाँ
तेरा शोके- तमाशा हूँ मैं
मेरे ज़ब्त का मुदावा है तु मगर
दश्ते -दिल में उतर आई है
फ़िराक के लम्हों की रौनकें कितनी
इक आलमे - बेक़रारी में
निगाह गाफ़िल है तुझसे
मुझ में तुझ से खुलते तो है
मजबूर तकाजों के दरीचे लेकिन
अब मैं हूँ तुझ से वाबसता
मेरी तन्हाई है
भीगी हुई रात का फूसुं है हर सू
लरजते रहते हैं मेरी पलकों पर
तेरी याद के शबनमी मोती
ऐ जाने -जहां ...
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NAZM
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E- jaane- JahaN......
hai tera hi khyaal
tu mera shouq hai kahan
tera Shoq-e-tamaasha hun main
Mere zabt ka mudaava hai tu magar
Dasht-E-Dil Mein utar aaye hai
Firaaq Lamho'n ki ronake'n kitni
ek aalme- beqarari mein
nigah gaafil hai tujse....
mujh main tujh se khulte toh hai
Majboor Taqazo'n ke dreeche lekin
ab mein hun tujh se vabstaa
meri tanhai hai
bheegi hui raat ka fusu'n hai har su
larjte rehte hain meri palkon par
teri yaad ke shabnmi moti
E- jaane- JahaN......
2 comments:
बहुत-बहुत बधाई...
Congrats...
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