Sunday, February 3, 2008

“काश"











"काश"

हर वक्त तुम्हारे होटों पर होती ,
काश मैं वो ग़ज़ल होती ,
जिन फूलों की तुम तारीफ करते ,
काश उन फूलों का तब्बसुम होती.

जिन नज़ारों को तुम आँखों मे बसाते,
काश उन नजारों का नूर होती .
जिसे तुम हर पल पाना चाहते ,
काश मैं ही वो हुर होती .

जिससे तुम्हारे दिल की प्यास बुझती ,
काश मैं वो पैमाना होती ,
जो हर पल तुम्हारी सांसों को मेह्काती ,
काश मैं वो खुशबु होती .

जिसे गवाने का डर तुम्हे हमेशा रहता ,
काश मैं वो तुम्हारी जान होती ,
तुम्हारे सीने मे अगर कुछ धड़कता है ,
काश मैं ही वो तुम्हारा दिल होती .

4 comments:

Mukesh Garg said...

hai to ladkiyo par lekin bahut hi accha likha hai. very nice & beautyfull thinking, i like it

इरशाद अली said...

मौहब्बत करना कोई आप से सीखें। मैं तो हैरान कि इतरे सारे कलर्स आप कहां से ला रहे है कितना कुछ जिया है आपने और देखा है।
जो तार से निकली है, वो धून सबने सूनी है
जो इस दिल पे गुजरी है, वो किस दिल को पता है।

अनुपम अग्रवाल said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

SUNDAR